जैसे ही मैनें वॉर्ड में प्रवेश किया, वहां का माहौल शोर-गुल और व्याकुलता से भरा हुआ था। सामने बेड नंबर पांच पर एक आदमी पड़ा था, जिसका शरीर अकड़ा हुआ था, मुंह से झाग आ रहे थे और वह कांप रहा था। उसकी कोलाहलमय आवाज उसके दर्द से छटपटाने को बयां कर रहा था। दर्द से कराहते हुए वह सिर्फ एक रट लगाए हुआ था…शाइनी को बुला दो, शाइनी को बुला दो। इसी बीच मैनें देखा व्हीलचेयर पर बैठी एक युवती तेजी से दर्द से कराहते हुए इंसान की तरफ बढ़ रही थी। वह बेड नंबर पांच पर पड़े इंसान को शांत कराने की पूरी कोशिश कर रही थी, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद वह ऐसा करने में सफल नहीं हो पा रही थी। उसने वहां मौजूद हर किसी से मदद की गुहार लगाई। अचानक मैंने देखा बेड नंबर दस पर पड़ी एक महिला अपने बेड से कूद गई और लंगड़ाते हुए पास में पड़े बेड की रॉड का सहारा लेते हुए उस इंसान की मदद के लिए आगे बढ़ने लगी। हालांकि दोनों महिलाएं बेड नंबर 5 पर पड़े इंसान की मदद करने की पूरी कोशिश कर रही थी, लेकिन जिस तरह से उस इंसान का शरीर ऐंठ रहा था, उससे यह साफ जाहिर हो रहा था कि उसे अतिरिक्त सहायता की जरूरत है, लेकिन वहां मेडिकल ऑफिसर और नर्स की अनुपस्थिति के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा था…
एक डॉक्टर होने के नाते मैं तेजी से बेड नंबर पांच पर पड़े इंसान की तरफ दौड़ा।ऐंठन की गिरफ्त में दर्द से परेशान जब उस इंसान ने मुझे अपनी तरफ आते देखा तो वह एक ही बात पूछने लगा कि शाइनी आ रही है न?
मेरे पास इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं था, इसलिए मैं वहां उपस्थित दूसरे लोगों की तरफ देखा। व्हीलचेयर पर बैठी युवती ने मुझसे इशारों ही इशारों में कहा कि कहा कि मैं उस इंसान को बता दूं कि शाइनी को सूचना दे दी गई है और वह रास्ते में है। मैं बिना अपना दिमाग लगाए जैसा मुझे युवती ने बताया मैनें तपाक से कह दिया कि शाइनी आ रही है। अब तक बेड नंबर पांच पर पड़ा इंसान थोड़ा सा शांत हो गया था, लेकिन उसके शरीर में ऐठन और मुह से निकल रहे झाग और खून में बहुत सुधार नहीं हुआ था। मैनें बताया कि मैं एक डॉक्टर हूं और बतौर वॉलेंटियर वृद्धाश्रम का दौरा करने आया हूं। व्हीलचेयर पर बैठी महिला भरी हुई सीरिंज ली हुई थी और उसने मुझसे मदद मांगी। मैंने बेड नंबर पांच पर पड़े इंसान का हांथ कसकर पकड़ा ताकि वह युवती उसे इंजेक्शन लगा सके। मैंने देखा कि उसकी नब्ज कमजोर हो रही थी और सांस भी धीमी हो रही थी। उसकी स्थिति बेहतर निगरानी और उचित चिकित्सा की जरूरत को दर्शा रही थी।यह सब देखकर मुझे थोड़ी नराजगी हुई, क्योंकि वहां किसी भी तरह की चिकित्सा या नर्सिंग सहायता उपलब्ध नहीं थी। कुछ समय बाद मैंने देखा कि एक नर्स ऑक्सीजन सिलेंडर की ट्रॉली खींचती हुई हमारी ओर दौड़ आ रही है। हमने तुरंत उसे ऑक्सीजन पर रखा और उसके चेहरे से खूनी झाग पोंछे और उसके शरीर को कस कर पकड़ लिया। वह अब धीरे-धीरे शांत हो रहा था और शाइनी के लिए उसकी बीच-बीच में पुकार भी धीमी पड़ने लगी थी।
इसी बीच किसी ने आकार बताया कि बाथरूम में कोई गिर गया है। मदद की एक और गुहार सुन नर्स उम्मीद की नजरों से मेरी तरफ देखी और मैने भी वक्त जाया किए बिना सहमति दे दी। हम दोनों डॉरमेट्री के बाथरूम की ओर भागे जहां एक बूढ़ा आदमी गीली फर्श पर खून से लथपथ सिर के बल पड़ा हुआ था। उस व्यक्ति की पहचान बेड नंबर 12 के रूप में हुई और वह बाथरूम की दीवार पर अपना सिर तब तक पीटता रहा जब तक वह बेहोश नहीं हो गया। वहां बाथरूम में उसके अलावा एक और व्यक्ति था जो बेहद कमजोर और बूढ़ा था बढ़ती उम्र उस पर इस कदर हावी था कि वह न तो उसकी मदद कर सका न ही मदद के लिए जोर से चिल्ला पाया। हमने चोटिल व्यक्ति को स्ट्रेचर पर लेटा दिया और लिफ्ट न होने के कारण उसे सीढ़ियों से नीचे एंबुलेंस तक ले गए। एंबुलेंस में बैठाते वक्त मैंने देखा कि वह व्यक्ति अपने हाथ में पूरी ताकत से फोन पकड़ा हुआ था। मैंने नर्स से उसके हाथ से फोन लेकर उसके परिवार को तत्काल सूचना देने को कहा। नर्स ने उदास आँखों से मेरी तरफ देखा और सेल फोन मुझे दे दिया। उसकी सांसें उखड़ती देख मैनें एंबुलेंस ड्राइवर से उसे तत्काल पास के सरकारी अस्पताल ले जाने को कहा। एंबुलेंस के वहां से जाते ही मैनें फोन चेक किया और देखा कि वह पिछले कई दिनों से किसी प्रिंस और रानी को लगातार कॉल कर हा था। हैरानी की बात यह थी कि आज सुबह भी वह इंसान उन्हीं दोनों नंबर पर कई बार कॉल किया था,लेकिन एक बार भी फोन नहीं उठा। मैंने अपने फोन से प्रिंस को फोन किया और कुछ रिंग के बाद जवाब पाकर मैं हैरान रह गया। प्रिंस बेड नंबर 12 का बेटा है, जो ओमान में रहता है और एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है।प्रिंस का असली नाम कुछ और है, लेकिन उनके पिता उन्हें प्यार से प्रिंस कहकर बुलाते हैं। बात करने पर प्रिंस ने बताया कि वह बहुत व्यस्त था और उसे अपने पिता की कॉल का जवाब देने का समय नहीं मिला! जब मैंने उसके पिता की स्थिति के बारे में बताया, तो उसने कहा कि वह अमेरिका जा रहा है और वह अपनी बहन को पिता से मिलने के लिए कहेगा। नर्स ने मुझे बताया कि रानी उसकी बेटी है, जो एक बैंक में मैनेजर है और शेल्टर होम से थोड़ी ही दूरी पर रहती है। उसने 6 महीने पहले अपने पिता को यहां भर्ती कराया और उसके बाद से कभी उससे मिलने नहीं आई। हम लोग आपस में बात कर ही रहे थे कि रानी का फोन आया। उसका असली नाम मेघा था और उसके पिता उसे रानी कहते थे। वह ऑफिस की एक मीटिंग में व्यस्त होने का हवाला देते हुए शाम को पिता से मिलने की बात कहकर फोन काट दी।
मैं बेड नंबर 5 की स्थिति जानने के लिए वापस वार्ड में गया। अब मैं व्हीलचेयर पर बैठी उस लड़की के बारे में भी जानने को उत्सुक था, जो इंजेक्शन ले जा रही थी और बिस्तर संख्या 5 की मदद कर रही थी। उसकी कहानी बेहद ही दुखद थी। कुछ साल पहले, नर्स बनने और विदेश जाने के ख्वाहिश लेकर वह बीएससी नर्सिंग करने के लिए कॉलेज में दाखिला ली थी। जब वह बीएससी नर्सिंग के तीसरे वर्ष में थी, तो कॉलेज में उसके सनकी प्रेमी ने उसे कॉलेज की छत से धक्का दे दिया। छत से गिरने के कारण उसे गंभीर स्पाइनल कॉर्ड इंजरी हुई, जिसके कारण उसके दोनों पैरों में लकवा की शिकायत हो गई और उसकी हंसती-खेलती और दौड़ती जिंदगी व्हीलचेयर पर आ गई। उसकी मां एक गृहणी और पिता दिहाड़ी मजदूर थे नतीजतन उसके परिवार में उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। कॉलेज के सीनियर नर्सिंग स्टाफ ने उसकी देखभाल की। अस्पताल में पूरी तरह से लकवाग्रस्त और अपाहिज होने के दौरान, उसने नर्सों को अन्य रोगियों की देखभाल करते हुए गौर से देखा। उसने अपनी पाठ्य पुस्तकों और पत्रिकाओं को पढ़ना जारी रखा, जिससे वह यहां तक पहुंच सकी।
जीवित रहने और सामान्य जीवन में वापस आने के उत्साह के साथ, उसने अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए फिजियोथेरेपिस्ट के साथ काम किया। दोनों पैरो में लकवा कि शिकायत होने के बावजूद अपने गरीब माता-पिता का खर्च वहन करने के लिए उसने वृद्धाश्रम में काम करना शुरू कर दिया। अब वह वार्ड के सभी बुजुर्गों और बीमार मरीजों की लाडली है। उसे अपनी अक्षमताओं को लेकर कोई अफसोस या शिकायत नहीं है। उसने कहा, मेरे दोस्त ने मुझे मौत के मुंह में नहीं धकेला, बल्कि एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के नेक मिशन में धकेल दिया। कुछ देर अपने बारे में बताने के बाद उसने मुझे बेड नंबर 5 के बारे में विस्तार से बताया। बेड नंबर पांच परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य था और वह एक निजी कंपनी में काम करता था। कंपनी ने उसकी पोस्टिंग उसके शहर से तकरीबन 4000 किलोमीटर दूर दी थी। जहां से ट्रेन से घर आने के लिए 7 दिन की कष्टदायी यात्रा करनी होती थी। काम का बोझ और घर से इतनी दूरी के कारण वह 3 साल में एक बार घर जा सकता था वह भी महज 2-4 दिनों के लिए। उसकी एक बेहद प्यारी बच्ची और वाइफ थी, बच्ची का नाम शाइनी था। बेटी की याद और परिवार से दूरी न उसे इतना विवश कर दिया कि एक दिन वह बिना छुट्टी लिए घर वापस आ गया और काम पर जाने से मना कर दिया। परिवार में कुछ दिन तो सब ठीक चला, लेकिन नौकरी न होने के कारण घर में आर्थिक संकट पैदा हो गया। इससे उबरने के लिए उसने छोटी-मोटी नौकरियां करने की कोशिश की, लेकिन कमाई पर्याप्त नहीं थी। इसको लेकर अक्सर पति- पत्नी के बीच झगड़ा होने लगा और स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ने लगी। कुछ महीनों बाद उसे मिर्गी की शिकायत हो गई। घर का खर्च और बीमारी का बोझ बढ़ने से उन दोनों के रिश्तों में और कड़वाहट बढ़ने लगी। जब उसे बार-बार दौरे पड़ने लगे तब पत्नी ने उसे यहां छोड़ दिया। यह आदमी हर दिन शाइनी के इंतजार में उसका नाम रटता रहता है, जबकि शाइनी और उसकी मां ने इसका नंबर तक ब्लॉक कर दिया है।
मैं वार्ड के अन्य बुजुर्गों को देखने लगा। यह केरल में एक वृद्धाश्रम सह धर्मशाला का दृश्य था जहां मैं इस तरह की सुविधा का फस्ट हैंड अनुभव लेने गया था। यह स्थान परोपकारी सहयोग से चलाया जा रहा है। कम धन के साथ, इसमें कर्मचारियों, आपूर्ति और स्थान की भारी कमी है। इसे अंतर्राष्ट्रीय दान दाताओं से कुछ वित्तीय सहायता प्राप्त होती थी, लेकिन विदेशी धन प्राप्त करने के सरकारी नियमों में हुए बदलाव के कारण यह अचानक से बंद हो गया। आश्रम के पास चिकित्सा अधिकारी को देने के लिए पैसे नहीं हैं। यह गंभीर रूप से बीमार, बूढ़े और निराश्रित लोगों का घर है, जिसे उन स्वयंसेवकों और नर्सों की मदद से चलाया जा रहा है, जो वेतन से नहीं, बल्कि जुनून से प्रेरित हैं। यह आश्रय गृह उन तमाम लोगों के लिए अंतिम गंतव्य हैं, जिन्हें उन लोगों ने छोड़ दिया है जिन्हें वे सबसे ज्यादा प्यार करते थे। अधिकांश वृद्धाश्रमों में इस तरह की कहानियां आम हैं। जीवन में आधुनिकरण जरूरी है, लेकिन क्या इस तरह का आधुनिकरण किसी नए तरह की सभ्यता की ओर इशारा करता है यह हम सबको सोचना होगा.
मैं वहां खड़ा होकर यह सब सोच रहा था कि बेड नंबर दस पर पड़ी बूढ़ी अम्मा अचानक मेरा हाथ थपथपाई और पूछी कि क्या मैं चाय पीना चाहूंगा। मेरे पास उन्हें मना करने की कोई वजह नहीं थी, इसलिए मैंने तुरंत सहमति दे दी। वह लंगड़ाते हुए रसोई की ओर गईं और चाय पीने के लिए कप-फ्लास्क लेकर आईं। बातचीत करने पर पता चला कि वह दुबई में टीचर थी और वहां अकेले ही रहती थी। अपनी दो बोटियों को अच्छी शिक्षा देने के लिए उन्होंने ये नौकरी चुनी थी। 5 साल दुबई में काम करने के बाद वह अपने देश वापस लौट आई और फिर यहां एक बड़ी राजनीतिक पार्टी से जुड़ गई। वह पार्टी के लिए दिन-रात काम करने के साथ ही अपने घर और बच्चों का भी भरपूर ध्यान रखती थी। उन्होंने बड़े गर्व से मुझे बताया कि उनकी दोनों बेटियां पी.एचडी. की हुई हैं और एक अमेरिका में जबकि दूसरी जर्मनी में सेटल है। उन्होंन बड़े प्यार से मुझे अपने पोते-पोतियों की फोटो दिखाई और मैनें देखा फोटो दिखाते वक्त उनके चेहरे पर अलग सी मुस्कान और चमक थी। हालांकि बातचीत में मुझे अगे पता चला कि आज तक वो अपने पोते-पोतियों से मिली नहीं हैं। हालांकि उन्हें सच में एक दिन देखने की उम्मीद उनमें अब भी बाकी है, लेकिन उम्र के पड़ाव और शारीरिक परेशानियों के आगे उनकी उम्मीद का सूरज डूबता हुआ दिख रहा था। परिवार और पार्टी का ध्यान रखने में व्यस्त होने के कारण वह खुद का ध्यान नहीं रख पाई और अनियंत्रित मधुमेह के कारण गैंग्रीन की चपेट में आ गईं, जिसके कारण उनका एक पैर काटना पड़ा। कुछ महीने बाद उनके पति की कैंसर से मृत्यु हो गई, हालांकि इलाज में उनकी सारी बचत खत्म हो गई। आर्थिक रूप से टूटी हुआ और बिना किसी सोशल सपोर्ट के कारण मजबूरी में वो आश्रय में काम करने लगी। जब मैंने पूछा कि क्या वह अपनी बेटियों के संपर्क में है, तो मुस्कुराते हुए उन्होंने जवाब दिया कि अब उनके पास एक ऐसा परिवार से है जो उन्हें बहुत अधिक प्यार करता है। हालांकि यह बताते हुए वह अपने आंसूओं को रोक नहीं पाई। इन दिनों जो बात उन्हें सबसे अधिक परेशान करती है वह है घास पर न बैठ पाना। आश्रम में लिफ्ट न होने के कारण वह पहली मंजिल से नीचे नहीं जा पाती।
मैं अपने चाय की आखिरी चुस्की ले रहा था तभी नर्स आई और उसने बताया कि बेड नंबर 12 की अस्पताल जाते वक्त रास्ते में ही मौत हो गई। यह सुनते ही मेरा दिल एकदम से बैठ गया। एक जिंदा दिल इंसान अपने राजकुमार और राजकुमारी का इंतजार करते-करते मर गया। एक दूसरा इंसान अपनी शाइनी को देख पाने की उम्मीद में बेहोश पड़ा था। बूढ़ी अम्मा मेरे मन में चल रहे विचार को भांप ली थी और मुझे इससे अलग करने के लिए उसने एक और कप चाय की पेशकश कर दी। उसने कहा कि ये सब घटनाएं अब उसे परेशान नहीं करते और जो चीज उसे खुश रखती है वह है गर्म चाय का प्याला.
मैं “मार थोमा एपिस्कोपल जुबली मंदिरम, कोट्टाराकारा, केरल” को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिसने मुझे उनके महान मिशन का हिस्सा बनने की अनुमति दी।