नवोदित चिकित्सकों के लिए सफलता के दस मूल मंत्र

प्रोफेसर पंकज चतुर्वेदी, टाटा मेमोरियल अस्पताल , परमाणु ऊर्जा विभाग, भारत सरकार

समर्पण – मानव शरीर प्रकृत्ति की सर्वोत्कृष्ट रचना है I समाज ने सिर्फ हमें इस शरीर की समस्याओं का निवारण करने का अधिकार दिया है I मरीज का चिकिसक के प्रति समर्पण, विश्वास की एक अद्वितीय पराकाष्ठा है I मरीज हम पर भरोसा करके हम पर एहसान करते हैं एवं हमें निरंतर सद्कर्म का अनूठा अवसर देते हैं । चिकित्सीय पेशा एक व्यवसाय नहीं बल्कि सेवा के प्रति आजीवन समर्पण है ।

करुणा – करुणा विहीन चिकित्सक एक सुगंध रहित पुष्प की तरह है। जब कभी अनिश्चितता मह्सूस हो, आप स्वयं को मरीज की स्थिति में कल्पना करें I आपको हमेशा सही निर्देश का अहसास होगा I दवाईयां जो काम नहीं कर पातीं वह एक सप्रेम स्पर्श कर सकता है।

संवाद – संवाद कुशलता न केवल एक सफल चिकित्सक होने के लिए बल्कि एक अच्छे शिक्षक और एक अच्छे अधिनायक होने के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारी डिग्री जितना रोगियों को प्रभावित नहीं करती उससे कहीं ज्यादा उनसे किया गया संवाद उन पर असर करता है ।

नैतिकता – चिकित्सकों को धरती पर ईश्वर का स्वरूप माना जाता है। अतः हमसे मरीजों एवं सहकर्मियों के प्रति सदैव नैतिकता एवं ईमानदारी की आशा की जाती है I ध्यान रखें, हम अस्पताल के दूसरे कर्मियों के लिए एक आदर्श स्वरूप हैं। निरीह एवं निःशक्त मरीज के साथ दुर्व्यवहार या उनका शोषण अस्वीकार्य दोष है।

स्वस्थ तन एवं मन – चिकत्सक बनने के लिए हमारे तन-मन का सेहतमंद होना नितांत आवश्यक है। जब हम खुद स्वस्थ होंगे तभी हम दूसरों को उत्तम सेवाएं दे पाएंगे और समाज में प्रेरणा स्त्रोत बन सकेंगे । इसके लिए उत्कृष्ट जीवन शैली महत्वूर्ण है । चिकिसीय जिंदगी एक मैराथन दौड़ की तरह है इसलिए अति आवेग में नहीं दौड़ना चाहिए ।

उत्तम स्वरुप – हमारा स्वरुप एवं हमारी वेशभूषा मरीजों पर गहरा प्रभाव डालते है। स्वच्छ शरीर, गरिमामई पहनावा, सकारात्मक हाव भाव एक अच्छे चिकित्सक की पहचान हैं। योग्यता से अधिक गुणवत्ता मायने रखती है। अतः अच्छा होने के साथ-साथ अच्छा दिखना भी जरूरी है।

धैर्य पूर्ण श्रोता – मरीज उन चिकित्सकों को सराहते हैं जो धैर्य से उनकी बातों को सुनते हैं। इससे उनका कष्ट आधा हो जाता है । अच्छे प्रकार से मरीजों की बात सुनने मात्र से ही आम बीमारियों की सही पहचान हो जाती है । इससे त्वरित निदान में तो सहायता मिलती ही है, अनावश्यक जांच पड़ताल और दवा से भी बचा जा सकता है।

जिज्ञासु – उस युग में जहाँ ज्ञान आसानी से इंटरनेट पर सुलभ है, वहां हमारे लिए रोगियों से अधिक ज्ञानी होना एक चुनौती है! हमारे ज्ञान की तीव्र अभिलाषा न केवल रोगियों के लिए फायदेमंद है बल्कि हमारे आत्मविश्वास एवं प्रोन्नति के लिए भी अनिवार्य है। मत भूलिए की मरीज ही हमारे सबसे अच्छे शिक्षक हैं।

प्रसन्न चित्त स्वभाव – प्रसन्न एवं मित्रवत व्यवहार हमारे पेशे में चार चाँद लगाता है । हमारा सरल एवं मित्रवत् आचरण हमारे मरीजों के ह्रदय में आशा का संचार करता है और हमारे दल को उत्साहित रखता है.

दस्तावेज़ीकरण – बदलते समाज में , कानूनी विवादों से बचने के लिए दस्तावेजों का उचित प्रकार से प्रलेखन एवं संरक्षण परम आवश्यक है ।

प्रो पंकज चतुर्वेदी

टाटा मेमोरियल अस्पताल, मुंबई

Thank you Juhi Shukla for help in translation

Published by Prof Pankaj Chaturvedi

Deputy Director, Center for Cancer Epidemiology, Tata Memorial Center, Mumbai. Professor, Department of Head Neck Surgery, Tata Memorial Hospital, Mumbai

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