A poetry to inspire cancer patients and fill them with optimism by Dr Pankaj Chaturvedi.
धीरज रख, मत हो हताश,
ये प्रकोप नहीं, परीक्षा है.
दुष्कर्मों का ये पाप नहीं,
ये रोग, रब की इक्षा है.
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किस्मत की फुंफकार नहीं,
यम की ये ललकार नहीं.
खुशियों का अकाल नहीं,
ये रोग इतना विकराल नहीं.
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भ्रमित, व्यथित विश्वास रख,
दुःख घोर घटा ये छंट जाएगी.
आशा का तूफ़ान उठा तू ,
दुखदायी रजनी कट जाएगी.
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जन्म मृत्यु सब कुदरत है,
कर्क रोग बस है माध्यम.
हर शख्श यहाँ अस्थाई है,
जश्न मना, तज दे मातम.
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आस की शमा न बुझने दे,
हंस के सब गम सहले.
आंसू के सैलाब उठें तो,
रोक उसे मत बहने दे.
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मत तू इसका कारण ढूंढ,
ग्लानि लाज बेमानी है.
नहीं अकेला तू जहान में,
दुखी यहां हर प्राणी है.
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हर शख्श जिसे तू प्यारा है,
रोज दुआएं मांगे वो सब.
पापा जल्दी घर आ जाओ,
दादी कहतीं “विजयी भव”.