लेखक – पंकज चतुर्वेदी
अनुवादक – प्रकाश चंद्र शुक्ला
मेरे बदन की खुजलाहट ने मुझे जगा दिया है और मैं घड़ी देखता हूं ।अभी तो , सुबह के 4:00 ही बजे हैं ।मैंने अपने बिस्तर और दीवार पर नजर डाली ,मच्छर ही मच्छर ।कुछ मोटे और कुछ महा मोटे ,जिनके पेट फूल गए हैं मेरा खून पीकर। और अब वे उड़ने में भी नाकाम हो गए हैं । मैंने अपनी नोटबुक उठाई और उन्हें पीट डाला। गिना एक,दो,तीन ,,,कुल 12 मोटे लाल नए धब्बे ।खून का बदला खून । संतुष्ट हुआ मैं और सोने की फिर कोशिश करने लगा, मगर कोरोना वारियर के नसीब में सोना कहाॅं। मच्छर ही मच्छर और तो और ,अब नीचे , सड़े से इस बिस्तर की ,खटमल भी खून चूसने पर आमादा है। इस बिस्तर पर सोना नामुमकिन है ,चलो फर्श ही पर सोता हूं, खटमल तो नही होगी। पर कैसे,फर्श भी ओदी है, रात जो बरसात हुई है थोड़ी सी ,इस बम्बई में। और ये मटमैला ,झूमर सा लटका पुराना पंखा भी ,आवाज के सिवा कुछ नहीं देता ।
उठो ,बिना सोये ही उठो, हे महान कोरोना योद्धा,देश थाली बजाता है तुम्हारे लिए !
पिछले कुछ दिनों से ऐसे ही शुरू होती है, दिनचर्या मेरी।
भला हो व्हाट्सएप मैसेजेस का ,जो नहीं सोने पर भी, रोने नहीं देते।मैंने चेक कर ली है अपनी सारी न्यूज फीड और व्हाट्सएप मैसेजेस। समाचार बता रहे हैं कि धारावी का संकट बढ़ता ही जा रहा है।बीमारों की संख्या और मौतें बढ़ती ही जा रही है। फ़ेसबुक यह भी बता रहा है कि रात को ही, एक युवा डॉक्टर, आईसीयू में कोविड-19 से मर गया और एक और अस्पताल में भर्ती है । 300 पुलिसकर्मी भी अस्पताल में है कोरोना वायरस के कारण। और मरीजों का ध्यान रखने वाले कर्मचारी भी इनफेक्टेड हो गए हैं । अभी अभी एक डॉक्टर जो मरीजों की सेवा से लौटकर घर आया है, सोसाइटी वाले उसे घर में नहीं जाने दे रहे हैं, पुलिस आई हुई है। घंटों से कोरोना मरीज की एक लाश अस्पताल में पड़ी है बिस्तर पर ,और उस पर ध्यान देनेवाला कोई नहीं है ।घर के लोग भी उसे ले जाने नहीं आ रहे हैं। यह भी लिखा है कि एक बेटे ने अपने बाप की लाश को लेने से मना कर दिया है । छोड़ो, हटाओ, लगा हुआ है आजकल।
सुबह 7:00 बजे ही मैसेज आ गया था कि मुझे धारावी के कोरोना सेंटर पर रिपोर्ट करना है और अब 7:30 बजे है।एक हॉस्टल में, ऐसी जगह पर हम लोग रोके गए हैं जहां पर कोरोना योद्धाओं के लिए अब नाश्ता तैयार है । नाश्ते की यह जगह बड़ी गंदी है । जिस फूड पैकेट को हमें दिया जाना है वह देखने में ही भद्दा लगता है ।न जाने इस के अंदर का नाश्ता कैसा होगा। पर जैसा भी हो पर अच्छा नहीं होगा । शायद इसमें भी वायरस लगे हुए होंगे। सच तो यह है कि पूरे जीवन भर हम डॉक्टरों को विरोध करना तो सिखाया ही नहीं गया है, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो हमें स्वीकार करना ही पड़ता है ।
इस समय तो जोरों की भूख लग आई है ,बिना खाए को चलेगा नहीं। नाश्ते में दो केला है ,जूस है और एक फूड पैकेट है। मैंने जूस पी लिया है और केला खा लिया है ,लेकिन पैकेट से तो डर लग रहा है। इसमें जो सैंडविच जैसी चीज़ है कुछ अजीब सी हो गई है। लगता है खराब हो गई है ,उसे खाया नहीं जा सकता।चलो बाहर फेंक कर आते हैं। अरे यहां तो पचीसों सैंडविच फेंकी हुई है। जिन्हें, भूख के मारे दौड़कर आए हुए कुत्ते भी नहीं खा रहे हैं। बस सूंघकर हट जा रहे हैं। हे भगवान जिस तथ्य को गली का कुत्ता भी आसानी से जान जाता है ,ये बड़े बड़े फ़ूड सप्लायर क्यों नहीं जान पाते।
इस समय हम जहां रहते है वह एक पुराने सरकारी मेडिकल कालेज का जीर्ण शीर्ण होस्टल है। जिसमें हमारे लिए कॉमन टॉयलेट है, वेंटीलेशन की व्यवस्था जरा भी अच्छी नहीं है, 8 गुणे 8 फिट के छोटे से कमरे में चार डॉक्टरों की व्यवस्था है । चार लोगों के बीच दो बिस्तर हैं और एक छोटा सा टेबल भी है। अतिशयोक्ति नहीं होगी अगर मैं कहूं कि हम लोग भी एक स्लम में ही रह रहे हैं। बम्बई में धारावी ही अकेला स्लम नही है ज्यादातर लोग ऐसे ही रहते हैं। और जबकि सच्चाई यह भी है कि मैं एक मशहूर मेडिकल कॉलेज का एम बी बी एस गोल्ड मेडलिस्ट हूँ। अब इंटर्नशिप करने, बेहिसाब सपने लेकर महानगर मुंबई में आया हूँ। लखनऊ में हमारा बंगला काफी बड़ा है दो-चार नौकर चाकर हैं और उनके परिवारों के रहने कीभी ठीक ठाक व्यवस्था भी है ,हमारे घर में।
महानगर मुंबई बुरे दौर से गुजर रहा है । दो करोड़ की जनसंख्या वाले इस इलाके ने इतना बडा स्वास्थ्य संकट और आर्थिक संकट कभी नहीं झेला है। स्कूल,दफ्तर कारखाने सब बन्द हैं।सारे अस्पताल मरीजों से भरे हुए हैं ।बहुत से अस्पताल तो बंद हो गए हैं । देश का सारा का सारा ध्यान कोरोना वायरस पर ही है । सोशल मीडिया और समाचार पत्रों ने तो इस शारिरिक बीमारी को मानसिक बिमारी भी बना दिया है ।
इस संकट के समय सारे सीनियर डॉक्टर घर में बैठे हुए हैं और हम, इंटर्नशिप और पोस्ट ग्रैजुएट स्टूडेंट्स, को देश सेवा के महान कार्य में लगा दिया गया है ।
क्या बात है ! कि जहां लगभग दो-तीन महीने पहले हम लोगों को बिल्कुल नखादा, अनुभवहीनऔर अनुपयोगी समझकर मरीजों को देखने भी नहीं दिया जाता था ,हमारा काम क्लर्क और बाबू जैसा था फाइल इधर ले जाओ उधर ले जाओ । वही आज हमें बड़े काम का योद्धा समझ कर, बिना किसी सुरक्षा और बिना किसी हथियार के मैदान में कोरोना वारियर बनाकर उतार दिया गया है। बलि के बकरे बेचारे हम।
अभी-अभी मैं एंबुलेंस में चढ़ा ही हूं कि मां की कॉल आई है लखनऊ से।जब जब वह मुंबई के बारे में पढ़ती है तुरंत मुझे फोन करती है।आखिर मां है, चिंता है उसे अपने बच्चे की ।मैं नही बताता कि धारावी जा रहा हूँ। गुस्साने लगेगी। मैं उसे कभी नहीं बताता कि सच्चाई क्या है और मैं किस तरह के संकट में हूं । मैं तो यह कहता हूं सब ठीक है चिंता न करो। बड़े आराम से हूँ।
मां ने बात खत्म की है कि लखनऊ से पुराने दोस्त का फोन आ गया है, वह नाराज है कि उसने टिक टॉक पर वीडियो बनाए हैं और भेजा हुआ है छः दिन से, लेकिन मैं उसे लाइक तक नहीं कर सका । इतना ही नहीं उसकी नई नवेली पत्नी , जिसने अभी अपना गिटार कोर्स खत्म किया है और एक सिंगिंग वीडियो बनाया है मुझे भेजा है पर मैं उसकी भी तारीफ नहीं कर सका। बहुत नाराज है ।क्या करूं मैं। मन तो करता है कि एक ऐसा ऐप भी होता ,जो मेरे इशारे से इन्हें झापड़ रसीद कर देता इस बेहूदगी के लिए ।यहां जान जा रही है और इन्हें टिक टाक और गिटार की पड़ी है ।
धारावी आ गई है ,मेरे चेहरे पर एक n95 मास्क है और एक फेस शील्ड,जो लाख कहने पर भी बदली नहीं जा सकी है ।और मैं उसे 10 दिन से पहन रहा हूं डरते डरते।मैं बहुत ही डरते हुए, एशिया के सबसे बड़े स्लम एरिया की पतली पतली गलियों से गुजर रहा हूं।चारों ओर से बदबू उठ रही है ,जगह-जगह धुआं उठ रहा है ।छोटे-छोटे बच्चे कुछ कम कपड़ों में ही इधर-उधर घूम रहे हैं ,कूद रहे हैं । बड़ो में भी कोई सोशल डिस्पेंसिंग नहीं है। और ऐसा लगता है कि इन्हें कोरोना से कोई खतरा भी नहीं लगता है । सच है, भारत में भगवान है और भगवान ही हमारी रक्षा करता है।हम भी भगवान का नाम लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
धारावी में मुझे काम दिया है घर घर में जाना और लोगों के लक्षणों को जांच करना और उन्हें इस बात के लिए उत्साहित करना कि वह अपना टेस्ट करा लें । मैं पॉलीथिन की बनी किट, फेशशील्ड , मास्क और ग्लव्स में कैद हूँ इस समय मौसम 40 डिग्री सेंटीग्रेड है और 80 परसेंट ह्यूमिडिटी है । इससड़े से मौसम में काम बहुत कठिन लग रहा है।घंटे भर हो गए हैं और मेरी पी पी ई किट के अंदर मेरा सारा कपड़ा पसीने से भीग चुका है ।मैं खुद भी बहुत प्यासा हो गया हूं लेकिन क्या करूं इस परिस्थिति में मेरे पास कोई रास्ता नहीं है कि मैं पानी पी सकूं।मुझे अभी इसी हालत में 3 घंटे और काम करना है। हे भगवान मैं कहीं बेहोश ना हो जाऊं। मन तो कर रहा है कि पीपीइ किट फाड़ कर फेंक दूं, मास्क उतार दूं ,शील्ड उड़ा दूं और खुली हवा में दो-चार सांस खींच लूँ पर ऐसा मौका नहीं है ,ये करना खतरनाक होगा।
मैं जिस झोपड़ी के बाहर खड़ा हूं उसके अंदर से कराहने की आवाज आ रही है ।अंदर अंधेरी सी कोठरी में एक निस्तेज युवती है उसका छोटा सा,बस दो साल का बच्चा खाट के नीचे से निकल कर के अभी अभी बाहर आया है। मैं इस अंधरे सीलन भरे कमरे में हूँ। जैसा दिख रहा है और बता रही है यह हंड्रेड परसेंट लास्ट स्टेज कोरोना पेशेंट है। जल्दी ही मर जाएगी।मैं सोच रहा हूं कि इसे कैसे यहां से ले चला जाए ,यहां ना तो स्ट्रेचर घुस सकता है और ना ही कोई व्हील चेयर। पड़ोसी दूर खड़े केवल इशारों से बात कर रहे हैं कोई भी उसके पास आने को तैयार नहीं है।वह डरी हुई है मौत से। अचानक उसने मेरा हाथ पकड़ लिया औरऔर रो रो कर कह रही है इसे बचा लेना मेरा चाहे जो हो जाए ।घर वाला बाहर गया है लॉकडाउन में फंसा है। मैं मरी तो ये भी मर जायेगा।बचा लेना। वह मेरे पैर पकड़ने लगी है।
अब उसकी सांस जा रही है वह बेहोश हुई जा रही है। कोई रास्ता भी नहीं है और समय भी नही।
ऑक्सीजन न मिली तो बच्चा अनाथ हो जायेगा। सोचने का समय ही नही था मैने अपनी सुरक्षा किट चेक की। बेहोश युवती को कंधे पर लादा, गली के बाहर खड़ी ऑक्सीजन युक्त एम्बुलेंस की ओर भागा। बच्चा भी पें पें करता साथ हो लिया। बच्चा भी माँ को कैसे छोड़ता। चल नासमझ तू भी चल एम्बुलेंस में, समझदार तो कोई चलेगा नहीं। सैकड़ों आंखे देख रही थी पर कोई आगे नहीं बढ़ रहा था। लगभग तीस मीटर दूर थी एम्बुलेंस।
युवती को एंबुलेंस में लिटा दिया गया है ऑक्सीजन मास्क लगा दिया गया है । लेकिन ऑक्सीजन लेवल बढ़ नहीं रहा है। चिंता है अगर आधे घंटे में इसे हाई फ्लो ऑक्सीजन न मिली तो बचेगी नही।मैंने फोन किया है अस्पताल को 1 मरीज लेकर आ रहा हूं आईसीयू तैयार रखो क्रिटिकल है साथ में एक छोटा बच्चा भी है।कोरोनावायरस है या नहीं ,जांच से ही पता चलेगा।
अब अस्पताल में उसे हाईफ्लो ऑक्सीजन पर रख दिया गया है कुछ उम्मीद जाग रही है परंतु युवती अभी बेहोश है। सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि बच्चे का क्या करें ,वह ना तो मां को छोड़ रहा है और ना ही हमें । बस रोए जा रहा है शायद भूखा है 2 दिन से खाया भी ना होगा,कैसे कुछ खिलाती माँ। अनुभवी नर्सों ने स्थिति भाँप ली है अभी बच्चे के लिए बिस्कुट लाई है अब बच्चा बिस्कुट खा रहा है और थोड़ा आराम से है , हे भगवान क्या करूं।
मोबाइल फिर से घनघना रहा है धारावी से बुलावा आ रहा है चलो एंबुलेंस लेकर वापस आओ। एक छोटी सी फैक्टरी पर बुलावा था ,जहां बहुत से लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। उनको लेकर जाना था । एक परिवार किसी भी हालत में टेस्ट कराने को तैयार नहीं था उसे भी मनाना था ।एक दिल का मरीज बार-बार हाथ जोड़ रहा था डॉक्टर साहब मेरी दवा मंगा दीजिए मर जाऊंगा , उसकी दवा मंगानी थी ।घर लौट रहे श्रमिकों एक जत्थे की भी जांच करनी थी। चारों और दुख का ही माहौल था । क्या करें।
इन झंझटों के बीच आज मुझे न तो खाना खाने का मौका मिला है और ना पानी पीने का। मेरा पीपीई किट बहुत तकलीफ दे रहा है। मैं खुद बीमार महसूस कर रहा हूं। थका हुआ ।मैं सुबह का निकला हूं और अभी शाम के 5:00 बज रहे हैं ,खाने का एक टुकड़ा भी मुंह में नहीं गया है शायद मैं बेहोश होकर गिर जाऊंगा।हॉस्टल पहुंचकर मैं अपने बेड पर ढेर हो गया हूं।अब कोई ताकत नहीं बची है ।इतनी भी नहीं कि रगड़ कर नहा सकूँ।ना कोई कॉफी पूछने वाला है और मैं चाय ।पानी भी अपने से लेना पड़ेगा ।
पर नहाना तो जरूरी है।
मैं नहा चुका हूँ।अब मुझे कोई फोन कॉल सोने से नहीं रोक सकती।
पर ये क्या एकाएक मुझे उस औरत का ख्याल क्यों आ रहा है उस बच्चे का ख्याल क्यों आ रहा है जिसे मैं अस्पताल में छोड़ कर आया हूं।कोई भावनात्मक लगाव ठीक नहीं , डॉक्टर हूँ मैं। जितना किया बहुत है।
मन बेचैन हो रहा है, खासकर बच्चे को लेकर, मां तो नहीं बची होगी अबतक शायद। चलो फोन लगाता हूं , पूछ लूंगा।पर ये क्या मुझे तो उसे स्त्री का नाम भी नहीं पता है और ना बच्चे का। खैर शुक्र है मुझे बेड नंबर याद आ रहा है 20 ।
अस्पताल ने बताया है कि 20 नम्बर वाली नहीं बची डेड बॉडी मोर्चरी में है कोई पूछने भी नही आया।बच्चे के बारे में कोई जानकारी नहीं। हे भगवान यह क्या हुआ उस छोटे से बच्चे का। भटक गया , कोई उठा ले गया, या वही मंडरा रहा है ,मेरे सिवा उसे कोई पहचानता भी नहीं है।मेरा गला सूखा जा रहा है जान निकली जा रही है। आज उसे अपने हाथ से बचाने की कोशिश की थी। हे भगवान ! मां तो नहीं रही चलो बच्चों को देखा जाए। उसके बारे में कुछ सोचा जाए , कुछ किया जाए यह सोचकर मैं फिर अस्पताल की ओर भागा जा रहा हूं। कोई ड्यूटी नही थी फिर भी।
कोरोना वार्ड में जाने के लिए मुझे फिर तैयारी करनी होगी।एक बार फिर पीपीई से लैस होना पड़ेगा ,चलो कोई बात नहीं। जैसे मैं उस अनाथ बच्चे की खोज के लिए आगे बढ़ा ,मैंने देखा कि वह बच्चा कोरोना वार्ड से दूर बनाये गए जनरल वार्ड के दरवाजे के बाहर खेल रहा है । मैं डर रहा था कि कहीं मुझे पहचान न ले , क्या करूँगा मैं उसका।पर उसने मुझे पहचान ही लिया और मेरा हाथ पकड़ कर वार्ड के अंदर खीचता चला गया। मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी , सच बताऊँ तो मैंने बच्चे से हाथ छुड़ाने की कोशिश भी की । पर अपनेपन की यह मासूम पकड़ थी ।
हे भगवान तेरी लीला अपरंपार ! उसकी मां तो ठीक-ठाक थी उसे शायद करोना नहीं था उसे अस्थमा का तेज दौरा पड़ा था । ऑक्सीजन से उसकी चेतना लौट आई थी , उसे कोरोना वार्ड की 20 नम्बर बेड से हटा कर जनरल वार्ड में भेजा गया था । ऐसा लगा कन्हैया ने देवकी को बचा लिया था।
मुझे देख माँ की आँखे बह चली , मेरी आँखे भी भीग गई ,आंसू निकल आए। अच्छा हुआ मास्क और फेशशील्ड में किसी ने मुझे रोते देखा नहीं ।फेसशील्ड ने मेरी इज्जत बचा ली सबके सामने।
रात हो गई है मैं हॉस्टल लौट आया हूं। मच्छर आ गये है।मुझे फिर भी काट रहे हैं पर नींद आ रही है । योद्धा सन्तुष्ट है ,अपने युद्ध से ।
बहुत सुंदर सजीव मार्मिक चित्रण कोरोना योद्धा की।। कथा लेखक की बधाइयां इतने प्रसंगिक लेख से रु बरु कराने के लिए👌👌
अनुवादक प्रकाश जी ने इतना सुंदर अनुवाद से कथा में पूरी जान डाल दी है, सरल और प्रवाहमय भाषा मोह लेती है।
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Beautifully narrated sir
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V. beautifully penned down sir.
Hats off to the Corona warriors n to u to bring facts to the society.
🙏🙏
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हृदय स्पर्शी मार्मिक चित्रण मुंबई के करोना योद्धा का ।
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